आत्मनिर्भर भारत को सशक्त बनाते प्राइवेट प्लेयर: रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की नई लहर

punjabkesari.in Monday, Sep 22, 2025 - 03:50 PM (IST)

नई दिल्ली/टीम डिजिटल।  कई दशकों तक भारत का रक्षा क्षेत्र आयात पर निर्भरता से परिभाषित रहा। यह निर्भरता हमारी सशस्त्र सेनाओं को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में आने वाले व्यवधानों के प्रति असुरक्षित बनाती थी और हमारी रणनीतिक स्वायत्तता को सीमित करती थी।

अब यह स्थिति तेजी से बदल रही है। नीति-निर्माताओं, सार्वजनिक संस्थानों और निजी उद्योगों के संयुक्त प्रयास से भारत को स्वदेशी रक्षा नवाचार का एक भरोसेमंद केंद्र बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है। लक्ष्य ऐसे सिस्टम तैयार करना है जो तकनीकी रूप से उन्नत, विश्वसनीय और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हों। सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल इस परिवर्तन का बड़ा मोड़ साबित हुई है। इससे रक्षा आत्मनिर्भरता की चर्चा केवल नीति घोषणाओं तक सीमित न रहकर एक राष्ट्रीय मिशन में बदल गई है, जिसमें सरकारी और निजी दोनों संस्थाएँ सक्रिय रूप से शामिल हैं।
इस बदलाव के नतीजे अब सामने आने लगे हैं।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत के रक्षा निर्यात वर्ष 2024–25 में ₹23,000 करोड़ के पार पहुँच चुके हैं, जो 2013–14 की तुलना में तीस गुना अधिक है। यह उपलब्धि भारतीय क्षमताओं में बढ़ते वैश्विक भरोसे और भारतीय उत्पादकों की यूरोप, इज़राइल और अमेरिका जैसे पारंपरिक रक्षा निर्माताओं से प्रतिस्पर्धा करने की योग्यता को दर्शाती है।

इस गति को बनाए रखने में संस्थागत समर्थन की अहम भूमिका रही है। तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में बनाए जा रहे डिफेंस कॉरिडोर निवेश आकर्षित कर रहे हैं, विनिर्माण क्लस्टर विकसित करने के लिए प्रोत्साहन दे रहे हैं और वैश्विक भागीदारों के साथ अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO), जो लंबे समय से भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास की रीढ़ रहा है, अब हाइपरसोनिक मिसाइलों, अगली पीढ़ी की मिसाइल प्रणालियों और अत्याधुनिक निगरानी तकनीक पर काम कर रहा है। साथ ही, यह निजी उद्यमियों को तेज़ और किफायती समाधान देकर इस क्षेत्र को और मजबूत करने के लिए अवसर प्रदान कर रहा है।

ऐसा ही एक निजी खिलाड़ी विजयन त्रिशूल डिफेंस सॉल्यूशन्स प्रा. लि. (VTDS) अपनी पहचान बना रहा है। उद्यमी साहिल लूथरा द्वारा स्थापित यह कंपनी मिशन-रेडी और किफायती रक्षा समाधान प्रदान करने पर केंद्रित है। हाल ही में श्री लूथरा ने नई दिल्ली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात कर स्वदेशी रक्षा विनिर्माण को आगे बढ़ाने पर विस्तृत चर्चा की। इस बैठक में निजी कंपनियों और सरकार के बीच सहयोग को मजबूत करने के उपायों पर भी विचार हुआ। रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने श्री साहिल लूथरा के योगदान की सराहना भी की। भारत की बढ़ती निर्यात उपस्थिति इस रुझान को और मजबूती देती है। दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों ने भारतीय निर्मित रक्षा प्रणालियों को अपनाना शुरू कर दिया है। इससे न केवल भारत की कूटनीतिक स्थिति मज़बूत हुई है, बल्कि आयात पर अत्यधिक निर्भरता से जुड़ी रणनीतिक कमजोरियाँ भी कम हुई हैं।

इसका असर घरेलू स्तर पर भी दिखाई दे रहा है। रक्षा आपूर्ति श्रृंखला के विस्तार से रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं, नई कौशल-क्षमताएं विकसित हो रही हैं और सहायक उद्योगों को भी लाभ मिल रहा है।

आगे का रास्ता अभी भी चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए लगातार अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश, नीतिगत समर्थन और समझदारी से की गई वैश्विक साझेदारियां आवश्यक हैं। लेकिन दिशा अब स्पष्ट है—भारत वैश्विक रक्षा बाजार में केवल एक खरीदार की भूमिका से आगे बढ़कर अब अपने लिए और मित्र देशों के लिए एक भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता बनने की ओर बढ़ रहा है।


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kahkasha

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